Saturday, 10 December 2011

अंदाज़-ए-इश्क

अंदाज़-ए-इश्क 

दिल में चुपके से बस जाता है,
आँखों से छुपकर झाँकता है वो,
अंदाज़-ए-इश्क कुछ ऐसा हीं  होता है.
बस जुबाँ पर आने से कतराता है.

कभी दिल में शोर मचाता है,
कभी उसे हीं विरान कर जाता है,
अंदाज़-ए-इश्क कुछ ऐसा हीं  होता है.
खुद मचलता है ,दुसरे पल में संभलता है.

धीरे-धीरे दबे पाँव  आता है,
संग ख्ह्वाहिशों का कारवां लाता है,
अंदाज़-ए-इश्क कुछ ऐसा हीं  होता है.
हर पल नए ख्वाबों को संजोता है.

जिसे अपना आशियाना बनाता है,
उस दिल के कभी टुकड़े कर जाता है,
अंदाज़-ए-इश्क कुछ ऐसा हीं होता है.
दर्द दे या ख़ुशी, लब्ज़ों में न वो बयाँ होता है.


 .~deeps

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