अंदाज़-ए-इश्क
दिल में चुपके से बस जाता है,
आँखों से छुपकर झाँकता है वो,
अंदाज़-ए-इश्क कुछ ऐसा हीं होता है.
बस जुबाँ पर आने से कतराता है.
कभी दिल में शोर मचाता है,
कभी उसे हीं विरान कर जाता है,
अंदाज़-ए-इश्क कुछ ऐसा हीं होता है.
खुद मचलता है ,दुसरे पल में संभलता है.
धीरे-धीरे दबे पाँव आता है,
संग ख्ह्वाहिशों का कारवां लाता है,
अंदाज़-ए-इश्क कुछ ऐसा हीं होता है.
हर पल नए ख्वाबों को संजोता है.
जिसे अपना आशियाना बनाता है,
उस दिल के कभी टुकड़े कर जाता है,
अंदाज़-ए-इश्क कुछ ऐसा हीं होता है.
दर्द दे या ख़ुशी, लब्ज़ों में न वो बयाँ होता है.
.~deeps
No comments:
Post a Comment