Tuesday 31 January 2012

Kadam


चले थे हाथ पकड़ ज़िन्दगी का,
हस्ते-मुस्कुराते एक अनजाने सफ़र पर
जाने कहाँ छोड़ हमे गयी ज़िन्दगी,
खड़े रह गये हम उसी मोड़ पर.

अब भी हैं हम उन्हीं अनजान राहों में 
वक़्त ठहर -सा गया, मौसम तो कितने बदले
पर एक हीं मौसम  तन्हाई का
रह गया हमारी निगाहों में .

सपनो के टुकड़े दूर तक
बिखरे पड़े हैं अब इन राहों में
कदम बढायें भी तो बढायें कैसे,
चुभते हैं मेरे हीं ख्वाब अब काटों जैसे.

शायद इंतज़ार हमे अब भी हैं,
फिर से चलने की कोशिश में हैं ये कदम
कहीं फिर किसी मोड़ पर मिले ज़िन्दगी
और ज़िन्दगी को फिर से अपना कहे हम.

~deeps

3 comments:

  1. Your words reflect you are very hurt with a relationship that didn't go well .. rather i would say, you didnt expect it will go( who does?!)*hugs* I hope you get all the strength to walk through the broken dreams and chase another, that's waiting for you at the other end :) Take care ..

    ReplyDelete