नन्हे सपने .
सूरज भी जाग चूका था,
बादलों के पीछे से,
चुपके से झांक रहा था ,
किरणे उसकी अब फ़ैल रही थी,
और वो तो अभी अपने
सपनो के गलियों में
धीरे-धीरे चल रही थी,
ये दुनिया उसकी अपनी थी ,
यहीं अभी भी वो कही खोयी थी,
उसे याद भी नही रात,
फिर कितना वो रोयी थी.
अचानक हुआ कहीं घंटी का लम्बा शोर,
आँखे मीचे उठी वो, सपनो की दुनिया पीछे छोड़,
दिखाई दिए कुछ उसके जैसे ही नन्हे-से कदम,
कंधे पे बैग लिए ,दौड़ रहे अपने स्कूल की ओर,
याद आया ,उसे भी तो था कहीं जाना,
नजर दौड़ाई आस-पास , कुछ ढूंड रही थी वो,
उसे एक बड़ा- सा प्लास्टिक का थैला मिल गया .
उसे ले कर उसका चेहरा थोडा खिल गया,
रोज़ की तरह जाना था उसे भी, पर स्कूल नहीं ,
उससे थोड़े दूर कचरों के अम्बार की ओर.
स्कूल तो बस दूर से ही देखती थी ,
किताबो के बारे में बस सोचती थी,
आज भी सपने में वही तो थी ,
इसलिए इस दुनिया से ज्यादा,
सपने ही उसे अच्छे लगते थे,
सच नही पर सच्चे लगते थे.
थैला उठाये चली वो ,
धीरे धीरे स्कूल के आगे बढ़ी वो,.
आज कुछ नया-नया सा था सब ,
देख के अजीब लगा उसे,
आज वहां से कचरों का ढेर था गायब,
सब साफ़-साफ़ था , जाने हुआ ये कब .
तभी बगल से एक शोर हुआ,
" आज शिक्षा दिवस है,
मिनिस्टर साहब आ रहे है , हटो सब"
एक हाथ ने उसे वहां से हटाया,
उसकी समझ में कुछ भी न आया.
एक कोने में खड़ी होकर वो देखती रही ,
बहुत-सी गाड़िया आकर खड़ी हो गयी,
कुछ सफ़ेद कपड़ों में गाड़ियों से निकले ,
लोगो ने उनके गले में मालाये डाली,
ओर जोर से सबने बजायी ताली ,
ओर सब स्कूल के अन्दर चले गये.
पर उसके कदम अभी भी वही ठहर गये ,
कुछ लोग गाड़ियों से कुछ सामान निकाल रहे थे,
किताबों का ढेर, शायद स्कूल में बाटने के लिए,
चुप -चाप उन्हें वो प्यारी सी-आँखे निहार रही थी ,
ओर जाने क्यों अचानक ख़ुशी से चमक रही थी .
सबके जाने के बाद ,धीरे से वो वहां गयी.
लगा उसे जैसे अपने सपनो के पास आ गयी,
एक पुस्तक वही गिरी पड़ी थी,
उसे देख उसके अन्दर खुशी की लहर दौड़ रही थी,
उसे उठाकर प्यार से खोलकर देखा,
बड़े सुन्दर चित्र ओर अंकित थे कुछ काले अक्षर ,
झूम उठी वो , आज पैर नही थे उसके जमीन पर,
उड़ने लगी वो ,लगा के फिर ख्वाबो के पर.
पर तभी वहां से तेज़ रफ़्तार में एक गाडी निकली,
ओर निकली एक चीख ,
छुटा हाथ से किताब ,दूर गिरा वो ज़मीन पर,
ओर फिर गिरी वो भी , कट गये उसके सपनो के पर,
एक ओर गाडी ने कुचल दिया उसके सपनो को,
वो उठी , दौड़ी लेने उस किताब को, पर
टुकड़े हो गये थे उसके, सब गया था मिटटी में मिल
वीरान हो गयी फिर वो आँखे,नन्हे सपने हो गये धूमिल.
~deeps
सूरज भी जाग चूका था,
बादलों के पीछे से,
चुपके से झांक रहा था ,
किरणे उसकी अब फ़ैल रही थी,
और वो तो अभी अपने
सपनो के गलियों में
धीरे-धीरे चल रही थी,
ये दुनिया उसकी अपनी थी ,
यहीं अभी भी वो कही खोयी थी,
उसे याद भी नही रात,
फिर कितना वो रोयी थी.
अचानक हुआ कहीं घंटी का लम्बा शोर,
आँखे मीचे उठी वो, सपनो की दुनिया पीछे छोड़,
दिखाई दिए कुछ उसके जैसे ही नन्हे-से कदम,
कंधे पे बैग लिए ,दौड़ रहे अपने स्कूल की ओर,
याद आया ,उसे भी तो था कहीं जाना,
नजर दौड़ाई आस-पास , कुछ ढूंड रही थी वो,
उसे एक बड़ा- सा प्लास्टिक का थैला मिल गया .
उसे ले कर उसका चेहरा थोडा खिल गया,
Courtesy: Google images |
उससे थोड़े दूर कचरों के अम्बार की ओर.
स्कूल तो बस दूर से ही देखती थी ,
किताबो के बारे में बस सोचती थी,
आज भी सपने में वही तो थी ,
इसलिए इस दुनिया से ज्यादा,
सपने ही उसे अच्छे लगते थे,
सच नही पर सच्चे लगते थे.
थैला उठाये चली वो ,
धीरे धीरे स्कूल के आगे बढ़ी वो,.
आज कुछ नया-नया सा था सब ,
देख के अजीब लगा उसे,
आज वहां से कचरों का ढेर था गायब,
सब साफ़-साफ़ था , जाने हुआ ये कब .
तभी बगल से एक शोर हुआ,
" आज शिक्षा दिवस है,
मिनिस्टर साहब आ रहे है , हटो सब"
एक हाथ ने उसे वहां से हटाया,
उसकी समझ में कुछ भी न आया.
एक कोने में खड़ी होकर वो देखती रही ,
बहुत-सी गाड़िया आकर खड़ी हो गयी,
कुछ सफ़ेद कपड़ों में गाड़ियों से निकले ,
लोगो ने उनके गले में मालाये डाली,
ओर जोर से सबने बजायी ताली ,
ओर सब स्कूल के अन्दर चले गये.
पर उसके कदम अभी भी वही ठहर गये ,
कुछ लोग गाड़ियों से कुछ सामान निकाल रहे थे,
किताबों का ढेर, शायद स्कूल में बाटने के लिए,
चुप -चाप उन्हें वो प्यारी सी-आँखे निहार रही थी ,
ओर जाने क्यों अचानक ख़ुशी से चमक रही थी .
सबके जाने के बाद ,धीरे से वो वहां गयी.
लगा उसे जैसे अपने सपनो के पास आ गयी,
एक पुस्तक वही गिरी पड़ी थी,
उसे देख उसके अन्दर खुशी की लहर दौड़ रही थी,
उसे उठाकर प्यार से खोलकर देखा,
बड़े सुन्दर चित्र ओर अंकित थे कुछ काले अक्षर ,
झूम उठी वो , आज पैर नही थे उसके जमीन पर,
उड़ने लगी वो ,लगा के फिर ख्वाबो के पर.
पर तभी वहां से तेज़ रफ़्तार में एक गाडी निकली,
ओर निकली एक चीख ,
छुटा हाथ से किताब ,दूर गिरा वो ज़मीन पर,
ओर फिर गिरी वो भी , कट गये उसके सपनो के पर,
एक ओर गाडी ने कुचल दिया उसके सपनो को,
वो उठी , दौड़ी लेने उस किताब को, पर
टुकड़े हो गये थे उसके, सब गया था मिटटी में मिल
वीरान हो गयी फिर वो आँखे,नन्हे सपने हो गये धूमिल.
~deeps
Such a heart touching,and my eyes filled with tears.
ReplyDeleteJaldi se jakar gandhi maidan me suniaye, ho sake shiksha diwas me koi reward mil jaye
ReplyDeletegandhi maidan jaane ki jarurat nhi hai mukeshji ..
ReplyDeletethnx @seema
ReplyDeleteA very very profound poem and thoughts behind it. I am sure you will like this post of mine as its on the same lines. Aye Zindagi!
ReplyDeleteSurely one of the good ones i have read...
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