Sunday 11 December 2011

प्यार-1

प्यार-1 

रेत का घर बनाया समंदर किनारे,
लहरों से उसे उजरना था हीं .
शीशे-सा दिल हमारा और इश्क हुआ पत्थर से ,
टूट कर बिखरना तो था हीं .
काटों का दामन जो थामा था हमने,
सीने में उन्हें चुभना था हीं .
बुलबुलों-से नाजुक ख्वाब थे हमारे,
पल भर में ख़त्म तो  होना था हीं.

ज़िंदगी जो रौशन हुई थी तेरे प्यार से ,
जुदाई के हवाओं से उसे बुझना था हीं .
जोड़ा था नाता उनसे जो रस्मों की जंजीरों से बंधे हैं,
प्यार की बंदिशों को तो टूटना था हीं .
यादें बचीं है जो तेरे प्यार की,
उनमे खोये रहते हैं हम कहीं .
एक शाम भी यूँ तड़प कर गुजारना है मुश्किल .
जाने कैसे कटेगी तनहाइयों में ये ज़िन्दगी.

~deeps

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