जाने क्यों ......
कभी तन्हाई में,
जब हो चारो ओर हो सन्नाटा,
ख़ामोशी की चादर ओढ़े हो हर दिशा,
जाने क्यों फिर भी दिल में इतना शोर होता है.
ज़िन्दगी की राह से,
जो चुने थे कुछ सुनहरे लम्हों के मोती ,
पिरोकर जिन्हें यादो की खुबसूरत माला थी बनायीं,
जाने क्यों उन्हें ही याद करके, दिल में इतना दर्द होता है.
रंगीन तितलियों की तरह ,
जो हसीं सपने थे आँखों में सजाये,
जिनके पीछे भाग-भाग के कितनी शामें बिताई,
जाने क्यों उनके पुरे होने पर भी ये आँखे भर आयीं .
कभी लोगों के चहेरे को ,
प्यारी-सी हसीं से सजाने के के लिए ,
खुद होठो पर मुस्कान लिए,कितनी नादानियाँ ये दिल करता है,
जाने क्यों फिर ये दिल सबसे से छुप कर ,अकेले में रोया करता है.
कितने ही हैं आस-पास ,
फिर भी क्यों होता है कभी अकेलेपन का एहसास,
रिश्तों की भीड़ में भी क्यों एक डर- सा रहता है,
जाने क्यों फिर ये दिल हर पल किसी अपने को ढूंढ़ता है .
वक़्त हर पल बदलता है ,
और इसके साथ कुछ लोग , कुछ रिश्ते भी बदल जाते हैं,
जानता है दिल ,मिलने के बाद कभी बिछुड़ना भी पड़ता है ,
जानता है दिल ,मिलने के बाद कभी बिछुड़ना भी पड़ता है ,
जाने क्यों फिर भी किसी की जुदाई से ,इतना दिल ये तड़पता है.
क्यों भागी ऐसे सपनो के पीछे
कि छोटी-छोटी खुशियों को भी जी न पायी
जाने क्यों कभी इन सवालों के जवाब मैं नहीं ढूंड पायी .
~deeps
Profound and beautifully crafted...
ReplyDeleteSaru
:) thnx @saru
ReplyDeletebeautiful........
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