Monday, 3 October 2011

Parva

पर्व

चकाचौंध , रंग-बिरंगी रौशनियों से,
पट गयी सड़के, सज गए भव्य पंडाल ,
उनके आगे लगी लम्बी-सी कतार,
दौड़ती-भागती भीड़ , लेकर,
अपने असंख्य , अपूर्ण ,
हर पल  में बढती  जाती ,
कामनाओं  का अम्बार .

टेकने माथा माँ के दरबार ,
फूल, फल ,मिस्ठान.
का लेकर चढ़ावा,
जीवन  से  असंतुष्ट ,
और धन पाने को इच्छुक ,
चले हैं  देवी को करने संतुष्ट .

 इस उम्मीद में  कि.
माँ  करेंगी उनका उद्धार,
बरसे देवी की कृपा अपार,
कर रहे है ,मंत्रोच्चार ,
अपराधबोध नहीं  ,
सुप्त-आत्माएं ,पर  
झुका रहे  हैं अपना शरीर,
माँ  के चरणों  में  बार -बार.

दान करने की भी ,
होड़-सी लग गयी हैं,
कोई  सौ,कोई हज़ार,
ज्यादा दान , ज्यादा कृपा ,
जैसे हो कोई व्यापार,
दान के असली अर्थ से ,
नहीं है कोई सरोकार .

कुछ  हीं दिनों में देवी,
की मूर्ति  का होगा विसर्जन,
ये आडम्बर होगा खत्म ,
अपनी अन्दर की श्रध्दा ,भक्ति
को तो , बहुत पहले हीं, 
कर चुके हैं विसर्जित ,
शून्य  की ओर बढ़ता जीवन ,
फैला हुआ है, हर तरफ, लोभ,
काम ,वासना , का अन्धकार.

एक पर्व खत्म होगा ,
तो फिर शुरू होगा दूसरा, 
निराकार शक्ति , को ,
फिर से लुभाने को ,
उसे आकर दे, मूर्ति ,
बनाकर , फिर होगी ,
उसकी  अराधना .
अपनी जीवन -साधना ,
में जो हो चुके  असफल.
करेंगे  शक्ति  की साधना. 

Source:Google Images




~deeps

  

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