टूटे हुए सपनो को फिर से दिल संजोता है.
जानती हूँ कभी मुझसे भी गलतियाँ होती हैं ,
पर उनपे खुद मेरी आँखें भी रोती हैं ,
फिर क्यों तू मेरा होकर भी तू ,
हर बार ,मुझसे ही रूठ जाता है,
खुद से मुझको क्यों फिर तू,
जुदा कर, यूँ तन्हा कर जाता है.
तेरी हसी में हीं हर बार मैंने ,
अपनी ख़ुशी को पाया है,
कभी सिर्फ तेरे लिए
अपने दर्द को हमने,
मुस्कुराहटो में छुपाया है.
जब कभी हमारी ,
दूरियों के एहसास ने ,
हमे तड़पाया है,
तेरी एक आवाज़ ने ही तो
एक पल में ही ,सारे
फासलों को मिटाया है
अनजाने में जो कभी ,
मैंने तुझे दर्द दिया है,
उस दर्द के प्यालों से ,
हमने भी तो कुछ घूँट पिया है,
तेरे साथ बिताये कुछ लम्हों में ही तो ,
हमने अपनी हर खुशियों को जिया है.
कभी पुरे दिन तेरी यादों में हम मुस्कुराए,
कई रातो को आसुओं भरे करवटों में गुज़ार दिया है ,
तेरा पूरा हक़ है हमपे,
तू मुझपे नाराज भी हो,
गलतियों की मुझे सजा भी दो ,
पर नाराजगी को भी तुम ,
जुबान से ही बयाँ करना,
मुझसे खफा होकर भी ,
फिर कभी यूँ चुप न रहना ,
कभी इतना इंतज़ार न करवाना,
रूठने का सिलसिला इतना न बढे,
क़ि तेरे पास आने से पहले ,
हमारी जिंदगी रूठकर,
हमसे, हमारा साथ छोड़ दे.
~deeps
No comments:
Post a Comment