Monday 12 September 2011

Memories........

स्मृतियाँ ...

स्मृतियाँ ...
कुछ  बिल्कुल नयी-सी , थोड़ी चंचल ,
चली  आयें  किसी वक़्त ,किसी भी  पल.
कुछ वक़्त के साये में धुंधली-सी पड़ी हुई ,
मुझसे रूठकर  न आने की जिद्द पे अड़ी हुई.
कुछ दे जाँये आँखों  को  खुशियों की झलक.
कुछ छोड़  जाती  दिल  में  एक टीस, तड़प.
कभी जब रहूँ तन्हा , हो कोई भी न  मेरे साथ,
ले आती साथ अपने  सुनहरे लम्हों की सौगात.

रेत की तरह फिसलते  वक़्त को  रोकना जब मैं चाहूँ.
जाने कहाँ से चुपके से आकर, पकड़ कर  मेरा हाथ .
ले जातीं  फिर मुझे उसी आँगन में अपने साथ ,
जहाँ मैं दौड़ती-भागती तितलियों के पीछे, 
और खाने की  पलेट  लिए माँ  आती मेरे पीछे,.
जीवंत हो उठता फिर वो सूना-सा आँगन,
लौट आता वो  मेरा खोया हुआ  बचपन.
लेकिन फिर एक पल  में सब खो जाता 
और  मेरी  हँसी उड़ाते हुए  बोलती वही यादें ,
लौट के वापस  कभी वो गुज़रा वक़्त नही आता.

कभी तन्हाईयों में ,मैं खुद से करती जब बात ,
लेकर कुछ  दोस्तों की  तस्वीरें अपने साथ.
दबे-पाँव धीरे से वो आ जाती ,आँखों में समा जाती,
उसी महफ़िल में फिर मैं खुद को हँसते  हुए  पाती,
जहाँ  जम के हँसी-ठहाकों की हो रही हो बरसात ,
कुछ दोस्तों  के साथ मैं  उडाती हुई  जिंदगी का मजाक,
आज वही  ज़िन्दगी उड़ा रही है हर पल मेरा ही मजाक.
ये कुछ यादें ही  हैं जो अब तक दे रही मेरा साथ.

पर कभी  वो ही दूर खड़ी हो, खुद पे इतराती.
लाख बुलाने पर  भी पास नही वो  आतीं .
और कभी न चाहो तो फिर भी  आ  जातीं,
साथ अपने लेके , कुछ  चुभने  वाले पल .
काटों  की तरह दिल में जख्म  कर जाती,  
जो भर चुके थे घाव ,उन्हें भी फिर ताजा 
कर , मुझे जाने क्यूँ इतना रुलाती.
महफ़िल में भी मुझे  तन्हा  कर जातीं .

वक़्त के  साथ मैं भी  चाहु जब आगे  बढ़ना .
छोड़ पीछे उन लम्हों को जिनमे हैं सिर्फ करवाहट,
जाने कहाँ से आकर , फिर  पकड़ लेती मेरा हाथ 
क्यों हर बार मुझे ले जाती बीते हुए पलों  में,
क्यूँ नही जीने देती चैन से मुझे  मेरा आज ?
मुझपे फिर हँसतीं वो यादें और कहती ,
 मैं तुझसेअलग नही, मैं तेरी ही अक्स हूँ.
कभी हँसाती कभी  रुलाती,पर ,
तुमसे तुम्हीं  को मैं मिलाती..








 ~deeps

1 comment:

  1. A very nice poem and I loved the image at the end of the post :)

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